Sanatan pragya by Dr Ramesh Singh Pal

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Friday, December 27, 2019

अध्यात्म के लिए अधिकारी कौन? Who is Qualified for Spirituality (In Hindi) by Dr Ramesh Singh Pal

 हमारे जीवन में कुछ अनुभव ऐसे होते है जिनको हम साधारण बुद्धि के द्वारा यदि समझने का प्रयास करते है तो वे अनुभव हमे समझ आने के बजाय हमारे मन पर उल्टा प्रतिघात करते है, लेकिन जब हमारी समझ एक स्तर के उपर चली जाती है तो हमें स्वंत ही जीवन का हर एक अनुभव रोमान्चित कर देता है। सभी लोगों ने अवश्य ही चींटी को देखा होगा। क्या कभी किसी को चींटी देखकर भगवान की याद आयी ? अगर चींटी को देखकर भगवान की याद नही आई तो अभी हमारी समझ बहुत ही निचले स्तर पर है। भौतिक जगत में यदि कोई मनुष्य एक बहुत अच्छी पेन्ंिटग बनाता है तो हम लोग उसको कितना सम्मान देते है ? कोई भी अच्छी पेन्टिग यदि दिख जाये तो एक दम उसी पेन्टर का नाम दिमाग मे जाता है, या फिर जो खिलाड़ी बहुत अच्छा क्रिकेट खेलता है, एक छोटे खिलाड़ी के लिए तो वो भगवान तुल्य बन जाता है, परन्तु क्या कभी हमारा ध्यान उधर भी गया जिसकी शक्ति के कारण एक छोटी सी चींटी से लेकर एक हाथी तथा पेड़, पौधे, जीव जन्तु में यह जीवन चल रहा है। क्या कभी हमने अपने जीवन का विश्लेषण करने का प्रयास किया? हम साँस अन्दर-बाहर छोड़ रहे हैए हमारा हृदय धड़क रहा है। क्या इन चीजों के कारण हममे जीवन है या हममे जीवन है इसलिए ये सभी क्रियाये हो रही है       
हमारा जीवन तीन स्तर पर चलता है। पहला है, आदि भौतिक। दूसरा है, आदि दैविक तथा तीसरा है, आध्यात्मिक स्तर। आदि भौतिक जीवन, आदि दैविक के बिना तथा आदि दैविक जीवन, आध्यात्मिक जीवन के बिना अधुरा है। जिस प्रकार अगर कोई मनुश्य अपनी जीवनी लिखे और वह सिर्फ अपने जाग्रत अवस्था के ही बारे मे लिखता है, मतलब उसने सिर्फ अपने सम्पूर्ण जीवन के एक तिहाई भाग की ही कहानी लिखी है बाकी के दो तिहाई भाग में क्या वह जीवित नही था ? तो जितनी भी जीवनी हम लोगो ने आज तक पढी वो सब अपूर्ण है, उनका कोई मतलब नही है। जिस प्रकार मान ले हमें कुछ पौधो में षोध करना है, उसमें photosynthasis एंव respiration को study करना है। तो क्या हम केवल दिन (day time) के data आधार पर पर किसी निश्कर्श पर पहुँच सकतें है ? नही। क्योकि incomplete data हमारे किसी काम का नही। यह सही result नही देगा बल्कि भ्रम पैदा करेंगा उसी प्रकार आदि भौतिक क्षेत्र माने यह संसार या हमारे अनुभव का क्षेत्र, आदि दैविक और आध्यात्मिक क्षेत्र के बिना मनुश्य में भ्रम पैदा करता है।
आदि दैविक क्षेत्र, यह अनुभव होने (experience) का स्तर है। अर्थात अनुभव की प्रक्रिया जैसे यदि हमारी आँखों में जो दृश्ट्रि है वह हो गयी अनुभव की प्रक्रिया या आदि दैविक क्षेत्र तथा तीसरा जीवन का स्तर है आध्यात्मिक स्तर, अब थोड़ा ध्यान देने वाली बात है। आदि भौतिक से आदि दैविक तक ज्यादा तक लोगो की समझ में जाता है। परन्तु ज्यादातर लोग आदि भौतिकं को ही सत्य समझ लेते है जबकि यहाँ पर यह समझना बहुत ही जरूरी है, कि आदि भौतिक की सत्ता आदि दैविक की वजह से है तथा आदि दैविक की सत्ता आध्यात्मिक क्षेत्र की वजह से है जैसे मै चष्मा पहनता हूँ। तो क्या चष्मा बाहर का रंग-रूप देख रहा है नही क्योंकि चष्मा अपने लिए तथा अपने आप बाहर की विशय-वस्तुओं को प्रकाषित नही कर रहा है। वह तो आँखों के लिए काम कर रहा है। तो क्या आँखे रंग-रूप को देख रही है ? नही। यदि आँखों में दृश्ट्रि हो तो चाहे आँखें कितनी ही सुन्दर या स्वस्थ क्यो हो उनका काई मतलब नही, तो क्या फिर दृश्टि के द्वारा हम बाहर के विशय-वस्तु, रंग-रूप को देख तथा अनुभव कर रहे है? थोड़ा चिन्तन करने से पता चलेगा कि यदि आँखो के पीछे मन हो तो हम आँखों में दृश्ट्रि होते हुए भी कुछ नही देखते, तो फिर क्या मन सब चीजो का प्रकाषक है नही मन अपने आप में जड़ है। मन में यदि चैतन्य हो तो मन कुछ भी नही है।
ऐसा करते-करते हमें यह पता चलता है कि आखिर ये कौन है जिसके कारण आदि भौतिक तथा आदि दैविक क्षेत्र अपना-अपना कार्य कर रहे है ? यही क्षेत्र आध्यात्मिक क्षेत्र कहलाता है। मान लिया एक मनुश्य अभी बिल्कूल स्वस्थ है, वह आदि भौतिक तथा आदि दैविक क्षेत्र को देख रहा है, उसमें व्यवहार कर रहा है। दूसरे ही क्षण, उसकी मृत्यु हो जाती है तो आदमी वो ही है उसकी अँाखे भी वैसी ही है लेकिन अब उसके लिए आदि भौतिक और आदि दैविक क्षेत्र का कोई मतलब नही है क्योकि आध्यात्मिक क्षेत्र ने देह के द्वारा आदि भौतिक और आदि दैविक क्षेत्र को प्रकाषित करना बन्द कर दिया है।

तो कुल मिलाकर बात यह हो गयी कि जो जीवन का अर्थ केवल आदि भौतिक क्षेत्र अर्थात आहार, (खाने-पीने) निद्रा (सोना) भय अर्थातः अपने को संरक्षित करना (देह अभिमान) तथा मैथुन (बच्चे पैदा करना) इन चार बातो को ही जीवन समझता है वह यह अध्यात्म के लिए अधिकारी नही है। 



डॉ रमेश सिंह पाल 

वैज्ञानिक, लेखक, आध्यात्मिक विचारक

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